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Showing posts from 2017

Ode on an evanescent flower

In shades of pink and shades of white, As an armor of a plucky knight; At a certain point of day in time, Thou beauty of the summer, thou shine. Three days for the life you wait, Three days to come off your adolescent age; Three days until that green bud sprouts, Three days until your Beauty you flout. Awaiting a time long you once shine, At a morning that all, but you, whine; No sorrow no sign of meloncholy you show, Even though this life you live is miniscule of a blow. Thine head held high with pride, Thine salute to the sun, big smile; Thine beauty above all at prime, Thou Beauty of summer, thou shine. This is the pride that envies me above all, The pride in spite of a life so small; A day thou have, a day that's all, Then too you live life so gay, so tall. With the cheer thou spread across horizons wide, With colours which as the sun, or even bright; The lesson you teach across generations wide, A life lived large is a

पुनर्जन्म-1

पहला ही पग रख जो देखा एक माता ने, ना सह सकता है कोई जहाँ; मौन थे देव सारे, और धड अलग पडा था पुत्र का। घुटनो पे बैठ उस माता ने चिल्लाया, धड उठा अपनी गोध मेँ समाया; अश्रु बह उन गालो से उतरे, निरजीव बालक की क्षाति को भिगाया। सीने से लगा कर रोयीं वो कुक्ष देर, दुखी थे सारे देवगढ, और देव; सर छुकाये थे खडे त्रिशूल-धारी भी, इस त्रिशूल से ही भूल कर बैठे थे वे। "किस्का है ये पाप यहाँ, एक बालक पर करा पृहार किसने? पुत्र मेरा है मृत पडा, ये पाप घोर किया किस्ने?" प्रचंड स्वरूप में आई वो देवी, आक्रोष से थी आँखे लाल; था क्रोध उनके उस सुंदर मुख पे, था हाथों मे उस बालक का गुलाल। थर थर कापी धरती उस दिन, गगन भी भय से लगा कापने; विराठ रूप देख उस देवी का, आग्रह सारे देव लगे करने। "आज कर दूंगी नाश इस सृष्टि का, आज सूख जायेंगी नदियां और पेड; आज कर दूंगी विनाश इन जीवो का, कर इस आकाश को भेद।" धरती पर लाल त्रिशूल रख, हाथ जोड़ आऐ नीलकंठ समक्ष; अश्रु उनके भी थे लगे बहने, "आपका पापी है खड़ा प्रत्यक्ष। इस बालक का हठ था कारण, अड़ गया था द्वार पर; सम

खून

इन    खून  में    साने  हाथो    का    कपकपाना    सुन , एक  सकपकाए    दिल    ने    आवाज़    लगाई    फिर से , ‘ क्या    साँस    बाकी    है    अभी ? या    एहसास  हुआ    कोई    ग़लत  फिर    से ?’ आँखों    से  पानी    रिस्ता  देख  लगा , थोड़ी  जान  बाकी  अभी  थी    शायद  उसमे ; अपने    खूनी  की    तरफ  देख , हाथ  उठा  गुहार  लगाई  फिर  उसने | ना    थी  अब  कोई    भावना , ना    प्यार ,   ना  संतवाना ; फिर  भी    उसके    दर्द  से  कराने  आज़ाद , घोत  कर  गला    पड़ा    दबाना | स्थिर  हो    गये  उसके  फड़फदते  पैर , हाथ ,   और  शांत  हो  गयी  उसकी  चीख ; पर  इस  सन्नाटे  में  भी    सुनाई  दे  रही  थी , उसके  जीवन  जीने  की    रीत | हमेशा    खुशी  को    पाने  का    सोचती  थी , सपनो    में    रहती  खुश ; हर    सपना  उसका  था    अधूरा , फिर  भी    जीवन  जीती  थी    बिना  किसी  अंकुश | सीखने  को    बहुत  कुछ  था    उससे , कुछ    नही  तो  खुशी    का    राज़  ही  ब