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Showing posts from September, 2014

लहरें

मैं किनारे पे खड़ा उस कश्ती को देखता हूँ, उसपे सवार उन मछुआरों को देखता हूँ, डूबते हुए सूरज की कमज़ोर किर्णो में, उस कश्ती की शांत परछाईं को देखता हूँ|  पूरा सागर शांत है, लहरें उसकी खामोश हैं, किनारे पे मेरे कदम भिगाती, ये लहरें अभी भी बेज़ुबान हैं| ये वही लहरें हैं जिनसे मैं डरता हूँ, दिन में, इनके रूप से डरता हूँ, बारिश में, इनके गुस्से से डरता हूँ, शांत महासागर, में इनके उछाल से डरता हूँ|  अभी ये खामोश हैं, पर ये खामोशी भी मुझे डराती है, पता नही क्या छुपाति ये हैं, मेरे ज़हन को हल्के से हिला जाती हैं|  कितनी ही कश्टियाँ डूबा चुकी हैं ये, कितनी ही ज़िंदगियाँ उजाड़ चुकी हैं ये, पता नही है कितनी भूख इन्हे, की अभी भी उस कश्ती पर मु फैला रही हैं ये|  कुछ तो होगी वजह, जो हैं इतनी तुनकी ये, जो भूख इनकी इतनी असीमित है, जो ताक़त इनकी इतनी अतुलनीय है|  पर उससे भी ज़्यादा है ताक़त उनकी, जो है जाते लड़ने इनसे, और है ज़्यादा हिम्मत उनकी, जो हैं जाते खेलने इनसे|  होती उनकी है जीत कभी वहाँ, तो कभी वहाँ हार भी जाते हैं वो, जिस डर से हूँ मैं खड़ा यहाँ, उस डर

Torn Edges; English

The poem ( http://sudhir-swarup.blogspot.in/2014/08/torn-edges.html?m=0 )unlike on what seems from the face of it, is not only about a dog, ignorant and playful, being ultimately run over by a vehichle. It's not just that. This may be called an inappropriate approach of the poet that he couldn't bring out his point and he gets lost in the story while creating it; loosing on the rhyming edge too. But an english translation is what it deserves atleast. The translation would not be traditional line-by-line explanation (which no doubt has bored us all in our years of literature) but a very brief reading of the thought behind the dog, its paper toy, and the vehichle. Our proverbial dog is you, me, or any other youngster today. He is weak in the context of the open world but has enough strength to control his life. He may not be very ready for the going traffic, but has enough spirit to cross the roads by himself. He with all the strength he has gets lost in small games life plays