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Showing posts from August, 2017

पुनर्जन्म-1

पहला ही पग रख जो देखा एक माता ने, ना सह सकता है कोई जहाँ; मौन थे देव सारे, और धड अलग पडा था पुत्र का। घुटनो पे बैठ उस माता ने चिल्लाया, धड उठा अपनी गोध मेँ समाया; अश्रु बह उन गालो से उतरे, निरजीव बालक की क्षाति को भिगाया। सीने से लगा कर रोयीं वो कुक्ष देर, दुखी थे सारे देवगढ, और देव; सर छुकाये थे खडे त्रिशूल-धारी भी, इस त्रिशूल से ही भूल कर बैठे थे वे। "किस्का है ये पाप यहाँ, एक बालक पर करा पृहार किसने? पुत्र मेरा है मृत पडा, ये पाप घोर किया किस्ने?" प्रचंड स्वरूप में आई वो देवी, आक्रोष से थी आँखे लाल; था क्रोध उनके उस सुंदर मुख पे, था हाथों मे उस बालक का गुलाल। थर थर कापी धरती उस दिन, गगन भी भय से लगा कापने; विराठ रूप देख उस देवी का, आग्रह सारे देव लगे करने। "आज कर दूंगी नाश इस सृष्टि का, आज सूख जायेंगी नदियां और पेड; आज कर दूंगी विनाश इन जीवो का, कर इस आकाश को भेद।" धरती पर लाल त्रिशूल रख, हाथ जोड़ आऐ नीलकंठ समक्ष; अश्रु उनके भी थे लगे बहने, "आपका पापी है खड़ा प्रत्यक्ष। इस बालक का हठ था कारण, अड़ गया था द्वार पर; सम