इन    खून   में    साने   हाथो    का    कपकपाना    सुन ,   एक  सकपकाए    दिल    ने    आवाज़    लगाई    फिर से ,       ‘ क्या    साँस    बाकी    है    अभी ?      या    एहसास   हुआ    कोई    ग़लत   फिर    से ?’       आँखों    से   पानी    रिस्ता   देख   लगा ,    थोड़ी   जान   बाकी   अभी   थी    शायद   उसमे ;   अपने    खूनी   की    तरफ   देख ,   हाथ   उठा   गुहार   लगाई   फिर   उसने |      ना    थी   अब   कोई    भावना ,   ना    प्यार ,   ना   संतवाना ;   फिर   भी    उसके    दर्द   से   कराने   आज़ाद ,   घोत   कर   गला    पड़ा    दबाना |      ...
This blog is about the general pondering any tormenting mind does. Sometimes this mind is in dilemma, sometimes atheist, sometimes rational, sometimes about society, sometimes about love and sometimes...