इन खून में साने हाथो का कपकपाना सुन , एक सकपकाए दिल ने आवाज़ लगाई फिर से , ‘ क्या साँस बाकी है अभी ? या एहसास हुआ कोई ग़लत फिर से ?’ आँखों से पानी रिस्ता देख लगा , थोड़ी जान बाकी अभी थी शायद उसमे ; अपने खूनी की तरफ देख , हाथ उठा गुहार लगाई फिर उसने | ना थी अब कोई भावना , ना प्यार , ना संतवाना ; फिर भी उसके दर्द से कराने आज़ाद , घोत कर गला पड़ा दबाना | स्थिर हो गये उसके फड़फदते पैर , हाथ , और शांत हो गयी उसकी चीख ; पर इस सन्नाटे में भी सुनाई दे रही थी , उसके जीवन जीने की रीत | हमेशा खुशी को पाने का सोचती थी , सपनो में रहती खुश ; हर सपना उसका था अधूरा , फिर भी जीवन जीती थी बिना किसी अंकुश | सीखने को बहुत कुछ था उससे , कुछ नही तो खुशी का राज़ ही ब
This blog is about the general pondering any tormenting mind does. Sometimes this mind is in dilemma, sometimes atheist, sometimes rational, sometimes about society, sometimes about love and sometimes...