काश उन पंखों में हवा होती,
तो कहीं दूर चल देते हम;
थोड़ी देर ठहरते,
फिर उससे भी दूर उड़ जाते हम|
उड़ने से थके पंखों को बालों में घिसते,
फिर नाखूनो से मोदते उन्हे हम;
नोक को सीधा कर के,
फिर हवा में चल देते हम|
जोड़ों को दबा कर,
उनमें फूँक भी भर देते हम;
एक आँख से निशाना लगा के,
फिर से उड़ चलते हम|
कहीं समुंदर देखते,
तो कहीं पहाड़ भी देखते हम;
कहीं झरने देखते,
तो कहीं इमारतें भी देखते हम|
पर ये जहाज़ कभी उड़े ही नहीं,
कभी ये दूर तक गये ही नहीं|
कुछ थे बने अख़बारों से,
तो कुछ फटे पन्नो से|
कुछ थे बने लड़ाई में,
तो कुछ बस युहीन खेल में|
पर उन सबकी उड़ान छोटी ही थी,
छत से सूखे आँगन तक|
तो कहीं दूर चल देते हम;
थोड़ी देर ठहरते,
फिर उससे भी दूर उड़ जाते हम|
उड़ने से थके पंखों को बालों में घिसते,
फिर नाखूनो से मोदते उन्हे हम;
नोक को सीधा कर के,
फिर हवा में चल देते हम|
जोड़ों को दबा कर,
उनमें फूँक भी भर देते हम;
एक आँख से निशाना लगा के,
फिर से उड़ चलते हम|
कहीं समुंदर देखते,
तो कहीं पहाड़ भी देखते हम;
कहीं झरने देखते,
तो कहीं इमारतें भी देखते हम|
पर ये जहाज़ कभी उड़े ही नहीं,
कभी ये दूर तक गये ही नहीं|
कुछ थे बने अख़बारों से,
तो कुछ फटे पन्नो से|
कुछ थे बने लड़ाई में,
तो कुछ बस युहीन खेल में|
पर उन सबकी उड़ान छोटी ही थी,
छत से सूखे आँगन तक|
Nice:)
ReplyDeleteThank you ma'am 😊
Delete<3 <3
ReplyDeleteBeautiful!
ReplyDeleteToo good... Proud of you pal.....
ReplyDeleteBhaukaal...
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