आज भी पापा की थैली में, कुछ खाने का पा जाते हैं,
आज भी उनके जगाने के झूठ में, अक्सर फस जाते हैं|
आज भी कुछ गरजने की आवाज़ सुन, आँखें आसमान को देखती हैं,
आज भी ये आँखें कोई, हवाइज़हाज़ या हेलिकॉप्टर ढूंडती हैं|
आज भी ये आँखें कोई, हवाइज़हाज़ या हेलिकॉप्टर ढूंडती हैं|
आज भी सुबह उठने में, उतनी ही परेशानी होती है,
आज भी आधी नींद में, पूरी किताबें पलटती हैं|
आज भी आधी नींद में, पूरी किताबें पलटती हैं|
आज भी मुसीबत में फोन, सबसे पहले दादा को ही जाता है,
और फिर उसके फोने के साथ, पूरा समाधान भी आता है|
और फिर उसके फोने के साथ, पूरा समाधान भी आता है|
आज भी गाने, वो पुराने ही अच्छे लगते हैं,
कभी रफ़ी, कभी किशोर, तो कभी मुकेश भी सुन लेते हैं|
कभी रफ़ी, कभी किशोर, तो कभी मुकेश भी सुन लेते हैं|
पर आज क्यू अकेले, अंधेरे में रहते हैं,
दूसरो को सिर्फ़, हसते हुए रहते हैं?
दूसरो को सिर्फ़, हसते हुए रहते हैं?
आज क्यू आँसू सिर्फ़ आँख तक ही रह जाते हैं?
क्या अभी बचपन, सिर्फ़ भुलाने को कहते हैं?
क्या अभी बचपन, सिर्फ़ भुलाने को कहते हैं?
After a long time something came from you and it is brilliant as always :)
ReplyDeleteha yar. thanks btw.
DeleteWe can never leave that part of us. It become our cherised memories. Beautiful poem.
ReplyDeletethank you :)
DeleteBahut badhiya !!
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ReplyDelete"आज भी कुछ गरजने की आवाज़ सुन, आँखें आसमान को देखती हैं,
ReplyDeleteआज भी ये आँखें कोई, हवाइज़हाज़ या हेलिकॉप्टर ढूंडती हैं|"
This always happens with me..very true lines...:)
Ha bro. Halat tight, but man kahin aur. Macro exam k pehle waley din likhe the.
DeleteGreat article, Thanks for your great information, the content is quiet interesting. I will be waiting for your next post.
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