मैं किनारे पे खड़ा उस कश्ती को देखता हूँ,
उसपे सवार उन मछुआरों को देखता हूँ,
डूबते हुए सूरज की कमज़ोर किर्णो में,
उस कश्ती की शांत परछाईं को देखता हूँ|
पूरा सागर शांत है,
लहरें उसकी खामोश हैं,
किनारे पे मेरे कदम भिगाती,
ये लहरें अभी भी बेज़ुबान हैं|
ये वही लहरें हैं जिनसे मैं डरता हूँ,
दिन में, इनके रूप से डरता हूँ,
बारिश में, इनके गुस्से से डरता हूँ,
शांत महासागर, में इनके उछाल से डरता हूँ|
अभी ये खामोश हैं,
पर ये खामोशी भी मुझे डराती है,
पता नही क्या छुपाति ये हैं,
मेरे ज़हन को हल्के से हिला जाती हैं|
कितनी ही कश्टियाँ डूबा चुकी हैं ये,
कितनी ही ज़िंदगियाँ उजाड़ चुकी हैं ये,
पता नही है कितनी भूख इन्हे,
की अभी भी उस कश्ती पर मु फैला रही हैं ये|
कुछ तो होगी वजह,
जो हैं इतनी तुनकी ये,
जो भूख इनकी इतनी असीमित है,
जो ताक़त इनकी इतनी अतुलनीय है|
पर उससे भी ज़्यादा है ताक़त उनकी,
जो है जाते लड़ने इनसे,
और है ज़्यादा हिम्मत उनकी,
जो हैं जाते खेलने इनसे|
होती उनकी है जीत कभी वहाँ,
तो कभी वहाँ हार भी जाते हैं वो,
जिस डर से हूँ मैं खड़ा यहाँ,
उस डर को कबका मार चुके हैं वो|
उसपे सवार उन मछुआरों को देखता हूँ,
डूबते हुए सूरज की कमज़ोर किर्णो में,
उस कश्ती की शांत परछाईं को देखता हूँ|
पूरा सागर शांत है,
लहरें उसकी खामोश हैं,
किनारे पे मेरे कदम भिगाती,
ये लहरें अभी भी बेज़ुबान हैं|
ये वही लहरें हैं जिनसे मैं डरता हूँ,
दिन में, इनके रूप से डरता हूँ,
बारिश में, इनके गुस्से से डरता हूँ,
शांत महासागर, में इनके उछाल से डरता हूँ|
अभी ये खामोश हैं,
पर ये खामोशी भी मुझे डराती है,
पता नही क्या छुपाति ये हैं,
मेरे ज़हन को हल्के से हिला जाती हैं|
कितनी ही कश्टियाँ डूबा चुकी हैं ये,
कितनी ही ज़िंदगियाँ उजाड़ चुकी हैं ये,
पता नही है कितनी भूख इन्हे,
की अभी भी उस कश्ती पर मु फैला रही हैं ये|
कुछ तो होगी वजह,
जो हैं इतनी तुनकी ये,
जो भूख इनकी इतनी असीमित है,
जो ताक़त इनकी इतनी अतुलनीय है|
पर उससे भी ज़्यादा है ताक़त उनकी,
जो है जाते लड़ने इनसे,
और है ज़्यादा हिम्मत उनकी,
जो हैं जाते खेलने इनसे|
होती उनकी है जीत कभी वहाँ,
तो कभी वहाँ हार भी जाते हैं वो,
जिस डर से हूँ मैं खड़ा यहाँ,
उस डर को कबका मार चुके हैं वो|
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